Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Mahmood Ahmad Hashmi's Photo'

महमूद अहमद हाशमी

- 1914 | पाकिस्तान

महमूद अहमद हाशमी के शेर

347
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

बेटियाँ सब के मुक़द्दर में कहाँ होती हैं

घर ख़ुदा को जो पसंद आए वहाँ होती हैं

इक तिरा हिज्र जो बालों में सफ़ेदी लाया

इक तिरा शौक़ जो सीने में जवाँ रहता है

मैं नहीं मानता काग़ज़ पे लिखा शजरा-ए-नसब

बात करने से क़बीले का पता चलता है

उस की बस्ती से पहले क़ब्रिस्तान

आशिक़ों के लिए इशारा था

बारह घंटों की है इक रात जो टलती ही नहीं

हिज्र भी ऐन दिसम्बर में मिला है मुझ को

मेरे शे'रों से मिरी उम्र का अंदाज़ा कर

मुझ से मत पूछ मिरा यौम-ए-विलादत क्या है

शाइ'री इल्म-ओ-हुनर मज़हब सियासत बाद में

सब से पहले आदमी इंसान होना चाहिए

ज़ुल्म भी शर्मा रहा है अद्ल की मीज़ान से

कूद जाना चाहिए मीनार-ए-पाकिस्तान से

बैठे हैं कब सुकून से आशिक़-मिज़ाज लोग

गिर्दाब चाहिएँ कभी तूफ़ान चाहिएँ

बेटे मसरूफ़ रहे माल के बटवारे में

बेटियाँ बाप की मय्यत से लिपट कर रोईं

कई रंग बदलता है भरोसा नहीं उस का

फ़िलहाल वो मुख़्लिस है मगर ज़ेहन में रखना

नए कपड़े नए जूते नए बर्तन ख़रीदेगा

वो अपने सारे मेडल बेच कर राशन ख़रीदेगा

ऐसा कहाँ ये ज़ाइक़ा गंदुम के पास है

रोटी में माँ के हाथ की शामिल मिठास है

वो इस लिए कि मोहब्बत की रस्म ज़िंदा रहे

हसीन लोग ब-कसरत जहाँ में भेजे गए

तुम्हारे घर की फ़ज़ा साज़गार है शायद

तुम अपनी उम्र से छोटे दिखाई देते हो

मिरी वफ़ा में कमी है तो मुझ से बात करे

उसे कहो कि वो आए मुज़ाकरात करे

सब से अच्छी है ये 'महमूद' अदब की दुनिया

ज़िंदगानी के सलीक़े का पता चलता है

क्या सोचता है ख़ुद वो किसी माँ की मौत पर

तख़्लीक़ करने वाले से मेरा सवाल है

ज़मीं की गोद में माएँ भी जा के सोती हैं

ज़मीन माँ की भी माँ है ज़मीं से प्यार करो

मुर्शिद छोड़ हम को हमारे नसीब पर

ज़रख़ेज़ खेतियों को भी दहक़ान चाहिए

इतना सच्चा फिर किसी ने प्यार दिया

माँ की मौत ने मुझ को आधा मार दिया

पहले सोया करता था 'महमूद' लम्बी तान कर

फिर शुऊ'र आता गया और रतजगे बढ़ते गए

चाहिए एक मुलाक़ात महीने में ज़रूर

ताज़गी हल्क़ा-ए-अहबाब में जाती है

तुझे भी फूलों के बिस्तर पे रतजगे ही मिले

उरूज तेरा भी मेरे ज़वाल जैसा है

दिन अगर मेरा परेशानी में गुज़रे 'महमूद'

माँ तसल्ली के लिए ख़्वाब में जाती है

ज़ाहिर हुआ है मुझ पे यतीमी की पहली रात

अब मेरा जिस्म आधा है आधा नहीं रहा

बारिश जिसे 'महमूद' समझता है ज़माना

इंसान के किरदार पे रोते हैं फ़रिश्ते

कोई मरता नहीं है मर के भी

क़ब्र सब के लिए नहीं होती

पहले दो-चार सुख़न-वर ही हुआ करते थे

अब तो हर शख़्स सुख़न-वर है बचाए मौला

'महमूद' तुम तो लोगों के हो कर ही रह गए

अपने लिए भी वक़्त निकाला करो कभी

मिरी तरह से शजर भी हैं बाग़ियाना मिज़ाज

जहाँ से काटे गए थे वहीं से उग आए

राय क्या क़ाएम करेंगे अजनबी उस शहर में

रस्ता बतलाए जहाँ पर एक अंधा आदमी

कुछ रंग तिरे रूप में यूसुफ़ की तरह हैं

वर्ना मैं तिरे हिज्र में याक़ूब होता

इश्क़ वो गीत जो उम्रों की रियाज़त माँगे

कौन इस गीत को आसानी से गा सकता है

इस्म-ए-आज़म भी मिरे साथ सफ़र करता है

मेरी कश्ती में जो बैठेगा अमाँ पाएगा

अब तो नापैद होते जाते हैं

सोच कर बात करने वाले लोग

रात को अश्क दिए ख़ून दिया आहें दीं

फिर कहीं जा के ये 'महमूद' उजाले हुए हैं

इक रात उस के हाथ पे आँसू गिरा के देख

'महमूद' तेरा चाँद सितारा-शनास है

मैं खौल उठा देख के दरिया का तकब्बुर

यूँ प्यासा पलटना मिरा मक़्सूद नहीं था

बहुत ही सोज़ बहुत ही गुदाज़ है इस में

तुम्हारा हिज्र अज़ान-ए-बिलाल जैसा है

कि मज़बूत करें प्यार की बुनियादों को

घर शिकस्ता हो तो बरसात में बट जाता है

जल रहे हैं चारों अपने अपने आतिश-दान में

सर्दियों की शब सितारे ख़ुश्क ईंधन और मैं

तालाब के पानी में रवानी नहीं होती

ये बात मिरी ज़िंदगी भर ज़ेहन में रखना

गुमनामियों के बीच उतरना नहीं मुझे

'महमूद' जिस्म मरना है मरना नहीं मुझे

आज 'महमूद' के सर पर नहीं साया कोई

माँ सफ़र पर मुझे करती थी रवाना मिरे दोस्त

कई चकोर मिरे हुस्न के हिसार में हैं

बर-आब-ए-सिंध बिछी चाँदनी का बेटा हूँ

Recitation

बोलिए