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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Majid-ul-Baqri's Photo'

माजिद-अल-बाक़री

1928 - 1995

माजिद-अल-बाक़री के शेर

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बीस बरस से इक तारे पर मन की जोत जगाता हूँ

दीवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर

बात करना है करो सामने इतराओ नहीं

जो नहीं जानते उस बात को समझाओ नहीं

क़रीब देख के उस को ये बात किस से कहूँ

ख़याल दिल में जो आया गुनाह जैसा था

होंट की सुर्ख़ी झाँक उठती है शीशे के पैमानों से

मिट्टी के बर्तन में पानी पी कर प्यास बुझाया कर

मुझी से पूछ रहा था मिरा पता कोई

बुतों के शहर में मौजूद था ख़ुदा कोई

सूखे पत्ते सब इकट्ठे हो गए हैं

रास्ते में एक दीवार गई है

'माजिद' ने बैराग लिया है कोई ऐसी बात नहीं

इधर उधर की बातें कर के लोगों को समझाया कर

इंसान में क्या भरा हुआ है

होंटों से दिमाग़ तक सिले हैं

लोहे और पत्थर की सारी तस्वीरें मिट जाएँगी

काग़ज़ के पर्दे पर हम ने सब के रूप जमाए हैं

अंधे मोड़ को जो भी काटे आहिस्ता गुज़रे

साइकिलें टकरा जाती हैं अक्सर मोटर से

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