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Masroor Shahjahanpuri's Photo'

मसरूर शाहजहाँपुरी

1949 | शाहजहाँपुर, भारत

मसरूर शाहजहाँपुरी के शेर

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कहाँ है ताब-ओ-ताक़त जिस पे तुम को नाज़ रहता था

जवानी पर तुम 'मसरूर' इतराते तो अच्छा था

ख़्वाब जब से इक हसीना के नज़र आने लगे

मौलवी साहब भी ब्यूटी पार्लर जाने लगे

मुफ़्त की पी कर कही थी एक दिन हम ने ग़ज़ल

शेर उठ उठ कर चचा ग़ालिब से टकराने लगे

मरहूम शा'इरों का जो मिल जाए कुछ कलाम

सरक़े का ले के जाम चलो शा'इरी करें

गए थे बाल्टी भरने पे उन से इश्क़ कर बैठे

घड़े अपने किसी मस्जिद से भर लाते तो अच्छा था

जवानी उन को घर में चैन से रहने नहीं देती

मियाँ 'मसरूर' ही मुजरिम मगर ठहराए जाते हैं

एक बोसा दे के वो बोले मज़ा आया नहीं

एक बोसे में रुमूज़-ए-इश्क़ खुल जाएँगे क्या

वो जागे कि ज़रा जागती तक़दीर मिरी

और सब जाग उठे खाट के सरकाने से

इस बुढ़ापे में लगाया है उन्हों ने सुर्मा

बाज़ आते नहीं वो अब भी सितम ढाने से

ससुराल में भी दाल का गलना मुहाल है

साले हैं बे-लगाम चलो शा'इरी करें

फिर से वो योगा की वर्ज़िश कर रहे हैं बाम पर

फिर से लठ अपने मोहल्ले में वो चलवाएँगे क्या

कहा था डॉक्टर ने बच के रहना ख़ुश-ख़ुराकी से

मगर तौबा वो बैठे हैं तो अब तक खाए जाते हैं

एक बोसे के लिए इतना हमें दौड़ाएँगे

क्या ख़बर थी वो क़ुतुब-मीनार पर चढ़ जाएँगे

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