मेह्र अली के शेर
ये सोच कर वुजूद फ़रामोश कर दिया
ख़ुद से मिला तो तेरी तमन्ना करूँगा मैं
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तलाश करता है हर गाम कारवाँ हम को
हवा-ए-दश्त बुला ले गई कहाँ हम को
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मुझ में अब मेरी जगह बाक़ी नहीं
मैं तिरी मौजूदगी से भर गया
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उस एक लम्हे में ऐ दोस्त साथ साथ हैं हम
वो एक लम्हा जो इम्कान में नहीं आया
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मैं नहीं जानता कहाँ हूँ मैं
इन दिनों ख़ुद से राब्ता ही नहीं
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देखी है 'उम्र भर यही बे-चेहरा काएनात
दो चार पल वुजूद के अंदर ही देख लूँ
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इक 'उम्र तेरे साथ चला भी तो क्या मिला
अब सोचता हूँ तुझ से बिछड़ कर ही देख लूँ
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अनगिनत नक़्श बना लेंगे ये नक़्क़ाश मगर
हुस्न महताब का महताब में रह जाएगा
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अपने अंदर जो भरी जस्त तो हैरानी हुई
इस कुएँ में सभी कुछ मेरे 'अलावा निकला
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