Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Midhat-ul-Akhtar's Photo'

मिद्हत-उल-अख़्तर

1945 | औरंगाबाद, भारत

मिद्हत-उल-अख़्तर के शेर

429
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

लाई है कहाँ मुझ को तबीअत की दो-रंगी

दुनिया का तलबगार भी दुनिया से ख़फ़ा भी

जिस्म उस की गोद में हो रूह तेरे रू-ब-रू

फ़ाहिशा के गर्म बिस्तर पर रिया-कारी करूँ

जाने वाले मुझे कुछ अपनी निशानी दे जा

रूह प्यासी रहे आँख में पानी दे जा

ख़्वाबों की तिजारत में यही एक कमी है

चलती है दुकाँ ख़ूब कमाई नहीं देती

तुम मिल गए तो कोई गिला अब नहीं रहा

मैं अपनी ज़िंदगी से ख़फ़ा अब नहीं रहा

आँखें हैं मगर ख़्वाब से महरूम हैं 'मिदहत'

तस्वीर का रिश्ता नहीं रंगों से ज़रा भी

तेरी औक़ात ही क्या 'मिदहत-उल-अख़्तर' सुन ले

शहर के शहर ज़मीनों के तले दब गए हैं

हम को उसी दयार की मिट्टी हुई अज़ीज़

नक़्शे में जिस का नाम-पता अब नहीं रहा

मैं ने साहिल से उसे डूबते देखा था फ़क़त

मुझे ग़र्क़ाब करेगा यही मंज़र उस का

कूच करने की घड़ी है मगर हम-सफ़रो

हम उधर जा नहीं सकते जिधर सब गए हैं

तू समझता है मुझे हर्फ़-ए-मुकर्रर लेकिन

मैं सहीफ़ा हूँ तिरे दिल पे उतरने वाला

मिरे वजूद में शामिल रहे हैं कितने वजूद

तो फिर ये कैसे कहूँ जो किया किया मैं ने

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए