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मिर्ज़ा अज़फ़री

दिल्ली, भारत

मिर्ज़ा अज़फ़री

ग़ज़ल 34

अशआर 26

हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग

मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे

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काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर

चौकाँ से ये खिलंडरे गेंदें उछालते हैं

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तेरे मिज़्गाँ की क्या करूँ तारीफ़

तीर ये बे-कमान जाता है

हम फ़रामोश की फ़रामोशी

और तुम याद उम्र भर भूले

कौन कहता है कि तू ने हमें हट कर मारा

दिल झपट आँख लड़ा नज़रों से डट कर मारा

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