मोहम्मद अमान निसार के शेर
जूँ जूँ नहीं देखे है 'निसार' अपने सनम को
तूँ तूँ यही कहता है ख़ुदा जानिए क्या है
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ख़ंजर न कमर में है न तलवार रखे है
आँखों ही में चाहे है जिसे मार रखे है
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क्या फ़ुसूँ तू ने ख़ुदा जाने ये हम पर मारा
तुझ से फिरता नहीं दिल हम ने बहुत सर मारा
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देखे कहीं रस्ते में खड़ा मुझ को तो ज़िद से
आता हो इधर को तो उधर ही को पलट जाए
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था जिन्हें हुस्न-परस्ती से हमेशा इंकार
वो भी अब तालिब-ए-दीदार हैं किन के उन के
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मत मुँह से 'निसार' अपने को ऐ जान बुरा कह
है साहब-ए-ग़ैरत कहीं कुछ खा के न मर जाए
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मुझ में और उन में सबब क्या जो लड़ाई होगी
ये हवाई किसी दुश्मन ने उड़ाई होगी
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आ जाए कहीं बाद का झोंका तो मज़ा हो
ज़ालिम तिरे मुखड़े से दुपट्टा जो उलट जाए
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किस जफ़ा-कार से हम अहद-ए-वफ़ा कर बैठे
आख़िर इस बात ने इक रोज़ पशेमान किया
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