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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मोहसिन एहसान

1933 - 2010 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान में नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

पाकिस्तान में नई ग़ज़ल के प्रतिष्ठित शायर

मोहसिन एहसान के शेर

मैं मुनक़्क़श हूँ तिरी रूह की दीवारों पर

तू मिटा सकता नहीं भूलने वाले मुझ को

अब दुआओं के लिए उठते नहीं हैं हाथ भी

बे-यक़ीनी का तो आलम था मगर ऐसा था

सुब्ह से शाम हुई रूठा हुआ बैठा हूँ

कोई ऐसा नहीं कर जो मना ले मुझ को

तन्हा खड़ा हूँ मैं भी सर-ए-कर्बला-ए-अस्र

और सोचता हूँ मेरे तरफ़-दार क्या हुए

मैं ख़र्च कार-ए-ज़माना में हो चुका इतना

कि आख़िरत के लिए पास कुछ बचा ही नहीं

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