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Munshi Naubat Rai Nazar Lakhnavi's Photo'

मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी

1864 - 1923 | लखनऊ, भारत

शायर, ख़दंग-ए-नज़र, ज़माना कानपुर और अदीब जैसी पत्रिकाओं के संपादक

शायर, ख़दंग-ए-नज़र, ज़माना कानपुर और अदीब जैसी पत्रिकाओं के संपादक

मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी के शेर

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गुफ़्तुगू की तुम से आदत हो गई है वर्ना में

जानता हूँ बात करती है कहीं तस्वीर भी

वहशियों को क़ैद से छूटे हुए मुद्दत हुई

गूँजता है शोर अब तक कान में ज़ंजीर का

फ़िक्र-ए-मआल थी ग़म-ए-रोज़गार था

हम थे जहाँ में और तिरा इंतिज़ार था

तुम ऐसे बे-ख़बर भी शाज़ होंगे इस ज़माने में

कि दिल में रह के अंदाज़ा नहीं है दिल की हालत का

देखना है किस में अच्छी शक्ल आती है नज़र

उस ने रक्खा है मिरे दल के बराबर आईना

फ़ना होने में सोज़-ए-शम'अ की मिन्नत-कशी कैसी

जले जो आग में अपनी उसे परवाना कहते हैं

वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार

झुक के जो मुझ से मिला वो एक ख़ंजर हो गया

वो शम्अ नहीं हैं कि हों इक रात के मेहमाँ

जलते हैं तो बुझते नहीं हम वक़्त-ए-सहर भी

या दिल है मिरा या तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है

गुल है कि इक आईना सर-ए-राह पड़ा है

सुनता हूँ कि ख़िर्मन से है बिजली को बहुत लाग

हाँ एक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ इधर भी

बनने लगे हैं दाग़ सितारे ख़ुशा नसीब

तारीक आसमान शब-ए-इंतिज़ार था

तम्हीद थी जुनूँ की गरेबाँ हुआ जो चाक

यानी ये ख़ैर-मक़्दम-ए-फ़स्ल-ए-बहार था

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