मुज़म्मिल अब्बास शजर के शेर
ये किस लिए ऐ ज़माने तिरी करे तक़लीद
'शजर' का रिज़्क-ए-सुख़न कर्बला से आता है
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हम ने भी ज़ुल्मतों को मिटाया है अपने तौर
सूरज के साथ साथ हमारा दिया भी है
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दिया दिए का इसे तुम ने नाम है यारो
वगर्ना ये तो मिरी झोंपड़ी का सूरज है
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गदा-ए-शाह-ए-नजफ़ हूँ सो मेरे कासे से
जहाँ को चर्ख़-ए-सुख़न के सभी पते मिलेंगे
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कौन ले दाद-ए-मसीहाई मिरे ज़ख़्मों से
और है कौन मिरे शहर में तेरे जैसा
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