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Muztar Khairabadi's Photo'

मुज़्तर ख़ैराबादी

1865 - 1927 | ग्वालियर, भारत

प्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के दादा

प्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार जावेद अख़्तर के दादा

मुज़्तर ख़ैराबादी की टॉप 20 शायरी

लड़ाई है तो अच्छा रात-भर यूँ ही बसर कर लो

हम अपना मुँह इधर कर लें तुम अपना मुँह उधर कर लो

किसी की आँख का नूर हूँ किसी के दिल का क़रार हूँ

जो किसी के काम सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ

उन का इक पतला सा ख़ंजर उन का इक नाज़ुक सा हाथ

वो तो ये कहिए मिरी गर्दन ख़ुशी में कट गई

मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी

बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला

जो पूछा मुँह दिखाने आप कब चिलमन से निकलेंगे

तो बोले आप जिस दिन हश्र में मदफ़न से निकलेंगे

तसव्वुर में तिरा दर अपने सर तक खींच लेता हूँ

सितमगर मैं नहीं चलता तिरी दीवार चलती है

वो शायद हम से अब तर्क-ए-तअल्लुक़ करने वाले हैं

हमारे दिल पे कुछ अफ़्सुर्दगी सी छाई जाती है

बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं

भले हो तुम जो किसी का भला नहीं करते

अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे

ख़फ़ा बैठे रहो तुम को मनाने कौन आता है

इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया

इक तुम हो कि तुम ने हमें रक्खा कहीं का

वक़्त दो मुझ पर कठिन गुज़रे हैं सारी उम्र में

इक तिरे आने से पहले इक तिरे जाने के बाद

व्याख्या

यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र का मूल विषय इंतज़ार और विरह है। वैसे तो एक आम इंसान की ज़िंदगी में कई बार और कई रूपों में कठिन समय आते हैं लेकिन इस शे’र में एक आशिक़ के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए शायर ये कहना चाहत है कि एक आशिक़ पर सारी उम्र में दो वक़्त बहुत कठिन होते हैं। एक वक़्त वो जब आशिक़ अपने प्रिय के आने का इंतज़ार करता है और दूसरा वो समय जब उसका प्रिय उस से दूर चला जाता है। इसीलिए कहा है कि मेरी ज़िंदगी में मेरे महबूब दो कठिन ज़माने गुज़रे हैं। एक वो जब मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ और दूसरा वो जब तुम मुझे वियोग की स्थिति में छोड़ के चले जाते हो। ज़ाहिर है कि दोनों स्थितियाँ पीड़ादायक हैं। इंतज़ार की अवस्था

शफ़क़ सुपुरी

व्याख्या

यह शे’र उर्दू के मशहूर अशआर में से एक है। इस शे’र का मूल विषय इंतज़ार और विरह है। वैसे तो एक आम इंसान की ज़िंदगी में कई बार और कई रूपों में कठिन समय आते हैं लेकिन इस शे’र में एक आशिक़ के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए शायर ये कहना चाहत है कि एक आशिक़ पर सारी उम्र में दो वक़्त बहुत कठिन होते हैं। एक वक़्त वो जब आशिक़ अपने प्रिय के आने का इंतज़ार करता है और दूसरा वो समय जब उसका प्रिय उस से दूर चला जाता है। इसीलिए कहा है कि मेरी ज़िंदगी में मेरे महबूब दो कठिन ज़माने गुज़रे हैं। एक वो जब मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ और दूसरा वो जब तुम मुझे वियोग की स्थिति में छोड़ के चले जाते हो। ज़ाहिर है कि दोनों स्थितियाँ पीड़ादायक हैं। इंतज़ार की अवस्था

शफ़क़ सुपुरी

उन को आती थी नींद और मुझ को

अपना क़िस्सा तमाम करना था

असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे

कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे

मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा

तो कह दूँगा कि अपनी मुश्किलें आसान करता हूँ

इकट्ठे कर के तेरी दूसरी तस्वीर खींचूँगा

वो सब जल्वे जो छन छन कर तिरी चिलमन से निकलेंगे

आँखें चुराओ दिल में रह कर

चोरी करो ख़ुदा के घर में

हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है

ये कहती है कि मेरा है वो कहती है कि मेरा है

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता

इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें

इन दोनों मकानों में झगड़ा नज़र आता है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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