नईम जर्रार अहमद के शेर
मैं वो महरूम-ए-इनायत हूँ कि जिस ने तुझ से
मिलना चाहा तो बिछड़ने की वबा फूट पड़ी
-
टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
जितनी आँखें थीं सारी मेरी थीं
जितने मंज़र थे सब तुम्हारे थे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
ये जानता है पलट कर उसे नहीं आना
वो अपनी ज़ीस्त की खिंचती हुई कमान में है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मैं ख़ुद को सामने तेरे बिठा कर
ख़ुद अपने से गिला करता रहा हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
मान टूटे तो फिर नहीं जुड़ता
बद-गुमानी कभी न आ के गई
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँ
कोई भी रास्ता नहीं रुकता
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
एक मंज़िल है मुख़्तलिफ़ राहें
रंग हैं बे-शुमार फूलों के
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इश्क़ तू भी ज़रा टिका ले कमर
दिल भी अब सो गया है रात गए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
या हुस्न है ना-वाक़िफ़-ए-पिंदार-ए-मोहब्बत
या इश्क़ ही आसानी-ए-अतवार में गुम है
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड