Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Naeem Zarrar Ahmad's Photo'

नईम जर्रार अहमद

1965 | लाहौर, पाकिस्तान

नईम जर्रार अहमद के शेर

मैं वो महरूम-ए-इनायत हूँ कि जिस ने तुझ से

मिलना चाहा तो बिछड़ने की वबा फूट पड़ी

जितनी आँखें थीं सारी मेरी थीं

जितने मंज़र थे सब तुम्हारे थे

ये जानता है पलट कर उसे नहीं आना

वो अपनी ज़ीस्त की खिंचती हुई कमान में है

मैं ख़ुद को सामने तेरे बिठा कर

ख़ुद अपने से गिला करता रहा हूँ

मान टूटे तो फिर नहीं जुड़ता

बद-गुमानी कभी के गई

इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँ

कोई भी रास्ता नहीं रुकता

एक मंज़िल है मुख़्तलिफ़ राहें

रंग हैं बे-शुमार फूलों के

इश्क़ तू भी ज़रा टिका ले कमर

दिल भी अब सो गया है रात गए

या हुस्न है ना-वाक़िफ़-ए-पिंदार-ए-मोहब्बत

या इश्क़ ही आसानी-ए-अतवार में गुम है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए