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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नज्मुस्साक़िब

1960

नज्मुस्साक़िब के शेर

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मिरे हाथ में तिरे नाम की वो लकीर मिटती चली गई

मिरे चारा-गर मिरे दर्द की ही वज़ाहतों में लगे रहे

कभी टूटने वाला हिसार बन जाऊँ

वो मेरी ज़ात में रहने का फ़ैसला तो करे

दिल को आज तसल्ली मैं ने दे डाली

वो सच्चा था उस के वादे झूटे थे

बदन को जाँ से जुदा हो के ज़िंदा रहना है

ये फ़ैसला है फ़ना हो के ज़िंदा रहना है

दुख-भरा शहर का मंज़र कभी तब्दील भी हो

दर्द को हद से गुज़रते कोई कब तक देखे

मैं ही टूट के बिखरा और रोया वो

अब के हिज्र के मौसम कितने झूटे थे

फिर एक बार लड़ाई थी अपनी सूरज से

हम आईनों की तरह फिर यहाँ वहाँ टूटे

उसे बे-नुमू किसी ख़्वाब ने कहीं गहरी नींद सुला दिया

उसे भा गई हैं कहावतें उसे भी क़फ़स में सुकून है

तुझ बिन ख़ाली रह कर कितने साल बिताने होंगे

मेरे हाथों में तेरी तक़दीरें कब उतरेंगी

हुनूज़ रात है जलना पड़ेगा उस को भी

कि मेरे साथ पिघलना पड़ेगा उस को भी

अना की क़ैद से निकले मुक़ाबला तो करे

वो मेरा साथ निभाने का हौसला तो करे

कौन है जो हर लम्हा सूरतें बदलता है

मैं किसे समझने के मरहलों में ज़िंदा हूँ

ये जिस्म टूट के हिस्सों में बटने वाला है

फिर इस पे अपनी रिवायात कुछ नहीं होगा

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