Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Nasim Zahid's Photo'

नसीम ज़ाहिद

1977 | कुवैत

नसीम ज़ाहिद के शेर

2
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

किरदार रहनुमा का मुझे लग रहा है यूँ

तलवार जैसे हो किसी पागल के हाथ में

बड़े अरमान से आया हुआ था

वो मुझ को लूटने मेहमान बन कर

ये आँसू पोंछ लीजिए और मुस्कुराइए

चारा नहीं है कोई भी रुख़्सत किए बग़ैर

मुक़द्दस अश्क हैं मुझ को मयस्सर

गुनाहों की सियाही धुल रही है

माँ के ख़ुलूस जैसा था मौसम बहार का

फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है सर-फिरी औलाद की तरह

दरिया में डुबो देंगे सभी शिकवे गिले हम

साहिल पे मुलाक़ात मुलाक़ात रहेगी

आई वो रफ़्ता रफ़्ता तक़द्दुस की राह तक

फिर यूँ हुआ कि निय्यत-ए-नासेह बिगड़ गई

मुझे ख़बर है उसे ऐसा दर्द है 'ज़ाहिद'

जिसे दवा नहीं रिश्वत सुकून देती है

उफ़ शब-ए-हिज्र की सियाही आज

कुफ़्र की तीरगी से बढ़ कर है

नहीं आते मगर तुम अजनबी बिल्कुल नहीं हो

हमारे घर की दीवारें तुम्हें पहचानती हैं

बना लिया है यहाँ इस लिए मकाँ मैं ने

ये वो जगह है जहाँ मुझ से कोई बिछड़ा था

देख के दाग़ अपने चेहरे पर

तुम तो आईना साफ़ करने लगे

उसे दौलत कमाने की हवस थी

नज़र से अब नज़ारा हो गई है

मैं सब्र कर रहा हूँ तो ज़ालिम है ता'ना-ज़न

उस को ख़बर नहीं कि ख़ुदा मेरे साथ है

उफ़ रहबरों में ऐसा कोई राहबर नहीं

जिस की निगाह ज़र्रे में ख़ुर्शीद ढूँड ले

मुद्दतों पहले उड़ा है वो परिंदा लेकिन

आज तक मेरी नज़र से कभी ओझल हुआ

ये बे-वक़ार सियासत का एक हिस्सा है

सरों की फ़स्ल उगाई गई है जलसे में

ये पेड़ है किसी की मोहब्बत की यादगार

आँधियो ये तुम से गिराया जाएगा

ता'बीर के परिंदों ने रुख़ ही बदल लिया

जब से हमारे ख़्वाब हुए जाल की तरह

तुझ को है नाक़िदीन से नफ़रत

तेरे कमरे में आईना क्यों है

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए