नवीन जोशी
ग़ज़ल 51
अशआर 20
वो नींद मिली है कि जो पूरी नहीं होती
वो ख़्वाब मिला है कि जो मा'ज़ूर हुआ है
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बख़्श मुझ को न अधूरी कोई ने'मत मौला
या तो दरिया ही दे पूरा या तो सहरा सारा
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इस दफ़ा तो ज़िंदगी जल्दी में थी
कह दो अगली बार फ़ुर्सत में मिले
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