नवीन जोशी के शेर
उस के माँ बाप नहीं हैं शायद
वर्ना उस में कहीं बच्चा होता
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वो नींद मिली है कि जो पूरी नहीं होती
वो ख़्वाब मिला है कि जो मा'ज़ूर हुआ है
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बख़्श मुझ को न अधूरी कोई ने'मत मौला
या तो दरिया ही दे पूरा या तो सहरा सारा
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इस दफ़ा तो ज़िंदगी जल्दी में थी
कह दो अगली बार फ़ुर्सत में मिले
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रंज यूँ राह-ए-मसाफ़त में मिले
कुछ कमाए कुछ विरासत में मिले
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मोहब्बत फ़क़त लफ़्ज़ था एक ख़ाली
ये किस ने कहा था मआ'नी मिला दो
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न जज़्बात से ये सफ़र तय हुआ
न दिल से कभी ये ज़बाँ तक गए
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प्यार आँखों से छलकता ही है
दिल के पैमाने में सारा न रहे
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निशान राही के राहों पे हो न हो लेकिन
निशान राहों के अक्सर मिलेंगे राही पे
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रह गए कितने किरदार भीतर मिरे
मेरे भीतर मिरा क़ाफ़िला रह गया
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कि हासिल यही मौसमों का रहा
बहारों के पत्ते ख़िज़ाँ तक गए
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फ़ासलों में रहा क़ुर्बतों का गुमाँ
क़ुर्बतों में कहीं फ़ासला रह गया
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रहूँगा जश्न-ज़दा मैं बहाने क्या कम हैं
तू रक़्स देखना मेरा मिरी तबाही पे
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क्या ज़रूरी है ये इक़रार की मुहताज रहे
हम मोहब्बत को यूँ लाचार करें भी कि नहीं
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अँधेरों उजालों की है ये लड़ाई
बुझाओगे तुम हम जलाया करेंगे
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तुम ने पौदे को था साए में रखा
धूप में रखते तो ज़िंदा होता
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धूप बढ़ने के जो आसार हुए
कितने साए के तरफ़-दार हुए
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कुछ वक़्त ज़रा और नहर दूध की लेगी
फ़रहाद को तेशा नहीं मंज़ूर हुआ है
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है वजूद उस का जो काग़ज़ पे करे साबित ये
बाज़ औक़ात है काग़ज़ बड़ा औक़ात से अब
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यही दाइमी मश्ग़ला है हमारा
नई चीज़ ले लो पुरानी मिला दो
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