नवनीत शर्मा के शेर
फ़ोन पर बात हुई उस से तो अंदाज़ा हुआ
अपनी आवाज़ में बस आज ही शामिल हुआ मैं
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मिरे अंदर मिरा कुछ भी नहीं बस तू है बाक़ी
तिरे अंदर बता प्यारे मैं अब कितना बचा हूँ
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जिया हूँ उम्र भर मैं भी अकेला
उसे भी क्या मिला नाराज़गी से
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किस ने सोचा था कि ख़ुद से मिल कर
अपनी आवाज़ से डर जाना है
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चोट खाए हुए लम्हों का सितम है कि उसे
रूह के चेहरे पे दिखते हैं मुहाँसे कितने
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एक तस्वीर को हटाया बस
दिल की दीवार ख़ाली ख़ाली है
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अपना बादल तलाशने के लिए
उमर भर धूप में नहाए हम
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मिरे क़रीब कोई ख़्वाब कैसे आ पाता
कि मुझ में रहते हैं बरसों से रतजगे रौशन
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