नवाब अहसन के शेर
बिखरे हुए ख़्वाबों की वो तस्वीर है शायद
अब ये भी नहीं याद कहाँ उस से मिला था
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शब-ए-फ़िराक़ की तन्हाइयों में तेरा ख़याल
मिरे वजूद से करता रहा जुदा मुझ को
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ख़ौफ़-ओ-दहशत से लब नहीं खुलते
वर्ना क़ातिल मिरी निगाह में है
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जब भी लौटा गाँव के बाज़ार से
मुझ को सब बच्चों ने देखा प्यार से
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एहसास-ए-तीरगी था उसे रौशनी के बा'द
इस ख़ौफ़ से चराग़ की लौ काँपती रही
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उस ने तो छीना था मेरे जिस्म से मेरा लिबास
जब पहन कर उस ने देखा तो क़बा ढीली मिली
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