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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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नुसरत मेहदी

1970 | भोपाल, भारत

एक मशहूर शायरा जिन्होंने अपनी शायरी में एक नया तानीसी एहसास पैदा किया

एक मशहूर शायरा जिन्होंने अपनी शायरी में एक नया तानीसी एहसास पैदा किया

नुसरत मेहदी के शेर

आजिज़ी आज है मुमकिन है हो कल मुझ में

इस तरह ऐब निकालो मुसलसल मुझ में

फ़ज़ा ये अम्न-ओ-अमाँ की सदा रखें क़ाएम

सुनो ये फ़र्ज़ तुम्हारा भी है हमारा भी

आज इस अंदाज़ से तुम ने मुझे आवाज़ दी

यक-ब-यक मुझ में ख़याल आया कि हाँ मैं भी तो हूँ

आप शायद भूल बैठे हैं यहाँ मैं भी तो हूँ

इस ज़मीं और आसमाँ के दरमियाँ मैं भी तो हूँ

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