पीरज़ादा क़ासीम के शेर
शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी
साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो
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तुम्हें जफ़ा से न यूँ बाज़ आना चाहिए था
अभी कुछ और मिरा दिल दुखाना चाहिए था
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उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें
बे-हिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए
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इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
यानी अब जुर्म-ए-असीरी की सज़ा दी जाए
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ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
दर्द में ढल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ
फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ
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