प्रियंवदा इल्हान के शेर
कीजे इज़हार-ए-मोहब्बत चाहे जो अंजाम हो
ज़िंदगी में ज़िंदगी जैसा कोई तो काम हो
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जो कहकशाँ सी नज़र आती हैं मिरी आँखें
गुज़िश्ता शब के ये आँसू हैं जो सितारे हुए
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फ़िक्र तेरी ठीक पर मेरी अना का भी तो सोच
दूर से बस देख ले ज़ख़्मों को मेरे छू नहीं
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वो ख़फ़ा हैं जाने किस किस बात पर
हम ने की है जो ख़ता कुछ और है
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ज़रा सी बात नहीं है किसी का हो जाना
कि उम्र लगती है बुत को ख़ुदा बनाने में
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अलग बात है ये कि तुम सुन न पाए
मगर हम ने तुम को पुकारा बहुत है
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ख़ुद-कुशी इक आख़िरी कोशिश है ज़िंदा रहने की
ख़ुद-कुशी करने को इक परवाह भी तो चाहिए
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तुझ को पा कर भी तुझे पाने की ख़्वाहिश है अभी
मेरे दरिया तू अलग तेरी रवानी है अलग
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आश्ना नज़रें तो कब की हो गईं ना-आश्ना
फिर भी आदत सी है आते-जाते वो घर देखना
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ना-उम्मीदी में भी इक उम्मीद बंधी सी रहती है
पहले पहले इश्क़ का आँसू टूटा तारा लगता है
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मुर्दा आँखें देखने से बढ़ के वहशत-नाक है
ज़िंदा आँखों में किसी की मौत का डर देखना
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लफ़्ज़-ए-कुन से एक दुनिया ख़ल्क़ करना था कमाल
कुन के आगे जो हुआ उस की कहानी और है
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हम नहीं हैं लोग वो जो रो सकें
जो मिली हम को सज़ा कुछ और है
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ख़बर दी सबा ने जो बिछड़ा था हम से
बिछड़ कर भी हम से हमारा बहुत है
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दिल को होना है फ़ना रहना है क़ाएम अक़्ल को
हस्ती-ए-आदम कहाँ जाए ये फ़ितरत छोड़ कर
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हम सहरा वाले हैं बदरा ये प्रेम की रिम-झिम और कहीं
आना है यहाँ तो आईयो तू जम कर झम-झम करने के लिए
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पर्बत सहरा नदियाँ जंगल हमराज़ तिरे होना चाहें
ख़ामोश परिंदे अब तो निकल दुख को सरगम करने के लिए
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