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प्रियंवदा इल्हान

1991 | बीकानेर, भारत

प्रियंवदा इल्हान के शेर

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कीजे इज़हार-ए-मोहब्बत चाहे जो अंजाम हो

ज़िंदगी में ज़िंदगी जैसा कोई तो काम हो

जो कहकशाँ सी नज़र आती हैं मिरी आँखें

गुज़िश्ता शब के ये आँसू हैं जो सितारे हुए

फ़िक्र तेरी ठीक पर मेरी अना का भी तो सोच

दूर से बस देख ले ज़ख़्मों को मेरे छू नहीं

वो ख़फ़ा हैं जाने किस किस बात पर

हम ने की है जो ख़ता कुछ और है

ज़रा सी बात नहीं है किसी का हो जाना

कि उम्र लगती है बुत को ख़ुदा बनाने में

अलग बात है ये कि तुम सुन पाए

मगर हम ने तुम को पुकारा बहुत है

ख़ुद-कुशी इक आख़िरी कोशिश है ज़िंदा रहने की

ख़ुद-कुशी करने को इक परवाह भी तो चाहिए

तुझ को पा कर भी तुझे पाने की ख़्वाहिश है अभी

मेरे दरिया तू अलग तेरी रवानी है अलग

आश्ना नज़रें तो कब की हो गईं ना-आश्ना

फिर भी आदत सी है आते-जाते वो घर देखना

ना-उम्मीदी में भी इक उम्मीद बंधी सी रहती है

पहले पहले इश्क़ का आँसू टूटा तारा लगता है

मुर्दा आँखें देखने से बढ़ के वहशत-नाक है

ज़िंदा आँखों में किसी की मौत का डर देखना

लफ़्ज़-ए-कुन से एक दुनिया ख़ल्क़ करना था कमाल

कुन के आगे जो हुआ उस की कहानी और है

हम नहीं हैं लोग वो जो रो सकें

जो मिली हम को सज़ा कुछ और है

ख़बर दी सबा ने जो बिछड़ा था हम से

बिछड़ कर भी हम से हमारा बहुत है

दिल को होना है फ़ना रहना है क़ाएम अक़्ल को

हस्ती-ए-आदम कहाँ जाए ये फ़ितरत छोड़ कर

हम सहरा वाले हैं बदरा ये प्रेम की रिम-झिम और कहीं

आना है यहाँ तो आईयो तू जम कर झम-झम करने के लिए

पर्बत सहरा नदियाँ जंगल हमराज़ तिरे होना चाहें

ख़ामोश परिंदे अब तो निकल दुख को सरगम करने के लिए

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