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क़ैसर ख़ालिद

1971 | मुंबई, भारत

क़ैसर ख़ालिद

ग़ज़ल 21

अशआर 10

मीठी बातें, कभी तल्ख़ लहजे के तीर

दिल पे हर दिन है उन का करम भी नया

बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर थी

इक दिन लबों से उन के ही नश्तर भी आएँगे

डाल दी पैरों में उस शख़्स के ज़ंजीर यहाँ

वक़्त ने जिस को ज़माने में उछलते देखा

मोहमल है जानें तो, समझें तो वज़ाहत है

है ज़ीस्त फ़क़त धोका और मौत हक़ीक़त है

तेरे बिन हयात की सोच भी गुनाह थी

हम क़रीब-ए-जाँ तिरा हिसार देखते रहे

पुस्तकें 4

 

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