राकेश उलफ़त के शेर
तुम्हारे हिस्से के जितने भी ग़म हैं मैं ले लूँ
मिरे नसीब की हर इक ख़ुशी मिले तुम को
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पानी हिला नहीं है अभी भी है जूँ का तूँ
पत्थर तो एक फेंक के देखा ज़रूर है
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मिरा फ़ख़्र-ए-हयाती आज भी किरदार है मेरा
इसी नग से मुज़य्यन तुर्रा-ए-दस्तार है मेरा
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