राघवेंद्र द्विवेदी के शेर
सब का अलग अंदाज़ था सब रंग रखते थे जुदा
रहना सभी के साथ था सो ख़ुद को पानी कर लिया
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इक तरीक़ा ये भी था फल बाँटते वो उम्र-भर
भाइयों ने पेड़ काटा और लकड़ी बाँट ली
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याद करने की वो शिद्दत खो गई जाने कहाँ
अब किसी को हिचकियाँ भी देर तक आती नहीं
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ज़िंदगी मिट्टी की सूरत चाक पर रक्खी हुई है
और हम बनते-बिगड़ते अपनी क़िस्मत देखते हैं
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ख़ूबसूरत रूह का इक पैरहन है जिस्म लेकिन
जिस्म के मलबे में सब ने रूह अपनी दफ़्न कर दी
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मिले दो वक़्त की रोटी सुकूँ से नींद आ जाए
यही पहली ज़रूरत है जिसे हम भूल जाते हैं
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माना कि मुझ में तह बहुत हैं और गहरा भी हूँ मैं
तुम ने भी तो मुझ को कभी खोला नहीं तरतीब से
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मैं ज़रा सा क्या खुला वो ख़ुद सिमटने लग गया
जो कहा करता था मुझ से खुल के क्यों मिलते नहीं
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माना कि हम-ख़याल नहीं हैं तो क्या हुआ
आँसू ख़ुशी के साथ ही रहते हैं आँख में
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बिना देखे किसी से इश्क़ कर के सोचता हूँ मैं
नहीं देखा है कुछ तो इश्क़ आख़िर देखता क्या है
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जो समझते थे हमीं से रौशनी दुनिया में है
वक़्त ने बे-वक़्त उन को रख दिया है ताक़ पर
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शहर के पक्के मकानों में दरारें आ गईं
गाँव के कच्चे घरों की नींव पक्की थी बहुत
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साथ चल कर देख मेरे और मुझ को आज़मा
क्यों यक़ीं करता है लोगों से सुनी हर बात पर
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वो कहानी छोड़ती है मुद्दतों अपना असर
जिस कहानी का कभी किरदार मरता ही नहीं
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सभी को चाहिए अपने घरों में रौशनी लेकिन
चराग़ों को जलाने का हुनर सब को नहीं आता
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ज़िंदगी से तंग आ कर ख़ुद-कुशी कर ली किसी ने
और कोई ख़ुद-कुशी करता रहा है ज़िंदगी-भर
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जाने कितनी बार सिक्कों को गिना करते थे हम
नोट की गड्डी ने हम से रेज़गारी छीन ली
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बहुत दुश्वार है जीना किसी भी बंद कमरे में
अगर हो बंद दरवाज़ा तो खिड़की खोल कर रखना
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अब समझ आया हमें ये रूह क्यों बेचैन है
फिर रहे हैं ज़ेहन पर हम बोझ लादे जिस्म का
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ठीक हो सकते हैं वो जो जिस्म से बीमार हैं
ज़ेहन से बीमार हैं जो उन का दरमाँ कुछ नहीं
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न जाने ज़िंदगी क्या देख कर रिश्ता निभाती है
किसी को दे दिया सब कुछ किसी को कुछ नहीं मिलता
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वो इशारा कर के पीछे हट गया था एक दिन
उस इशारे को समझने में लगा हूँ आज तक
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बात करना प्यार की आसान से आसान है
इश्क़ करना करते रहना है कठिन से भी कठिन
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बढ़ रहा है ज़िंदगी का कैनवस हर दिन मगर
रंग गहरा अब नहीं दिखता किसी तस्वीर में
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देरी से मिलने का जो ग़म तुझ को परेशाँ कर रहा
ऐ दोस्त हम भी हैं उसी ताख़ीर के मारे हुए
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धूप जाड़ा दर्द दुनिया भूक पत्थर प्यास आँसू
जाने किस किस से मिला हूँ ज़िंदगी तेरे लिए
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ज़िंदगी जब साँस तेरे पास ही गिरवी रखी है
क्यों नहीं देती हमें तू ज़िंदगी जीने की मोहलत
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इक तिरे कहने से मेरा कम नहीं किरदार होगा
ये अलग है बात मैं तेरी कहानी में नहीं हूँ
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अजब ये बात है हर दम हमारा सच परखता है
कभी तो झूट उस का भी कसौटी पर कसा जाए
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है कोई शामिल हमारी ज़िंदगी के फ़ैसलों में
बच के जाना था जहाँ से हम वहीं टकरा गए हैं
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आग से रिश्ता है मेरा और दरिया भी है अपना
आए दिन दोनों के झगड़े में उलझ कर रह गया हूँ
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मोहब्बत का नतीजा है जो अब तक साथ हैं दोनों
अगर कुछ और होता तो जुदा हम हो गए होते
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ख़ाक से पैदा हुआ है ख़ाक में मिल जाएगा
एक कुल्हड़ की तरह है आदमी की ज़िंदगी
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कहीं कोई दिया जलता है तो उस के इशारे पर
हवा भी उस की मर्ज़ी से चला करती है दुनिया में
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साथ भी छूटा नहीं कोई गिला-शिकवा नहीं
मैं निकल कर आ गया उस की गली से इस तरह
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जाने कितने ही शनावर इश्क़ के दरिया में डूबे
कैसे बचता मैं भी उस दरिया से जो प्यासा बहुत है
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दौलत मिली तो ज़िंदगी में आ गई लज़्ज़त मगर
आँखों से नींदें उड़ गईं दिल का सुकूँ भी छिन गया
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चराग़ों को जलाना है जलाओ तुम मगर पहले
हवा के दिल में क्या है ये पता करना ज़रूरी है
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किसी का जून कभी ख़त्म ही नहीं होता
किसी के पास दिसम्बर क़ियाम करता है
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ख़्वाब पूरे हो गए तो लुत्फ़ घटने लग गया
ज़िंदगी से कुछ शिकायत दिल में रहनी चाहिए
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अच्छे-भले जो लोग ख़द्द-ओ-ख़ाल से लगे
लेकिन वो चाल-ढाल से कम-ज़र्फ़ थे बहुत
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लाज़िम है इंतिज़ार करूँगा मैं उम्र-भर
मुमकिन अगर हो तुम भी मिरी राह देखना
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पहले तो बोलते हैं भरोसा है आप पर
फिर ये भी चाहते हैं वफ़ा का हिसाब दूँ
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दीवार के उस पार जाने की तमन्ना है तो फिर
हिम्मत जुटा कर तुम कभी दीवार ढाते क्यों नहीं
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इतना कहा गया था कि ज़ेवर उतार दें
और आप ने ज़मीन पे ईमान रख दिया
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चाँद तारे तोड़ लाना ये भी कोई काम है
हर क़दम पर साथ मेरे उम्र-भर चल के दिखा
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हर बात मान लेने में नुक़्सान ये भी है
उम्मीद उस को हद से ज़ियादा हो जाएगी
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दुनिया ने जिस हुनर से हमें राएगाँ किया
हम ने उसी हुनर से सँवारी है ज़िंदगी
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वो अगर इंकार कर दे बात उस की मान लो
“इश्क़ करने के लिए इतनी तो हिम्मत चाहिए”
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जिस ने किया है क़त्ल वही चीख़ चीख़ कर
सब से ये कह रहा है कि क़ातिल पता करो
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