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राघवेंद्र द्विवेदी

1980 | दिल्ली, भारत

राघवेंद्र द्विवेदी

ग़ज़ल 40

अशआर 72

आँसू निकल के आँख से पलकों पे रुक गए

घर छोड़ने के वक़्त ठिठकते हैं पाँव भी

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किसी का जून कभी ख़त्म ही नहीं होता

किसी के पास दिसम्बर क़ियाम करता है

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ख़्वाब पूरे हो गए तो लुत्फ़ घटने लग गया

ज़िंदगी से कुछ शिकायत दिल में रहनी चाहिए

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बे-हद क़रीब होने का नुक़सान ये भी है

दिखता नहीं है वो जो ज़रूरी है देखना

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हर बात मान लेने में नुक़्सान ये भी है

उम्मीद उस को हद से ज़ियादा हो जाएगी

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क़ितआ 10

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