साबिर आफ़ाक़ के शेर
पूछ उस शख़्स से मैं जिस को नहीं मिल पाया
मैं तुझे जितना मयस्सर हूँ तिरी क़िस्मत है
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मुझ को लगता है घड़ी जिस ने बनाई होगी
इंतिज़ार उस को भी शिद्दत से किसी का होगा
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अंधेरे का तसव्वुर क्या है बोलूँ
अंधेरा रौशनी से चल रहा है
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बहुत ही ख़ुश्की में गुज़री है इस बरस होली
गिला है तुझ से कि गीला नहीं किया मुझ को
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अना का सिर्फ़ मोहब्बत इलाज है 'आफ़ाक़'
तू नोक वाले मुसल्लस को दाएरे में मिला
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एक सूरा-फ़ातिहा और चार क़ुल पढ़ दीजिए
जो था प्यारा उस की बरसी है गुज़ारिश दोस्तो
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वस्ल को माँ के तरसते हैं मिरे बच्चे भी
कैफ़ियत हिज्र की मुझ पर ही नहीं तारी है
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मौत आ जाए वबा में ये अलग बात मगर
हम तिरे हिज्र में नाग़ा तो नहीं कर सकते
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टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
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मिल नहीं सकता जो मैं ने खो दिया
मौत का कोई भी मुतबादिल नहीं
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