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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सहबा अख़्तर

1931 - 1996 | कराची, पाकिस्तान

सहबा अख़्तर के शेर

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अगर शुऊर हो तो बहिश्त है दुनिया

बड़े अज़ाब में गुज़री है आगही के साथ

हमें ख़बर है ज़न-ए-फ़ाहिशा है ये दुनिया

सो हम भी साथ इसे बे-निकाह रखते हैं

तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया

चुप रहने की आदत ने कुछ और हमें बदनाम किया

मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए

वो जिस की आरज़ू मुझे शाएर बना गई

मिरी तन्हाइयों को कौन समझे

मैं साया हूँ मगर ख़ुद से जुदा हूँ

सुबूत माँग रहे हैं मिरी तबाही का

मुझे तबाह किया जिन की कज-अदाई ने

'सहबा' साहब दरिया हो तो दरिया जैसी बात करो

तेज़ हवा से लहर तो इक जौहड़ में भी जाती है

शायद वो संग-दिल हो कभी माइल-ए-करम

सूरत दे यक़ीन की इस एहतिमाल को

दिल के उजड़े नगर को कर आबाद

इस डगर को भी कोई राही दे

बयान-ए-लग़्ज़िश-ए-आदम कर कि वो फ़ित्ना

मिरी ज़मीं से नहीं तेरे आसमाँ से उठा

मैं उसे समझूँ समझूँ दिल को होता है ज़रूर

लाला गुल पर गुमाँ इक अजनबी तहरीर का

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