सरफ़राज़ ज़ाहिद के शेर
मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था
हमारे साथ पेश आने से पहले
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लम्हा इतनी गुंजाइश रखता है ख़ुद में
आप उस में आने से पहले जा सकते हैं
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कुएँ की सम्त बुला ले न कोई ख़्वाब मुझे
मैं अपने बाप का सब से हसीन बेटा हूँ
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वो एक ख़्वाब में मेरे क़रीब आए अगर
मैं सारे शहर की नींदें ख़रीद सकता हूँ
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साल गुज़र जाता है सारा
और कैलन्डर रह जाता है
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टैग : नया साल
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सब को क़ुदरत थी ख़ुश-कलामी पर
ख़ामुशी में ज़बाँ-दराज़ था मैं
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गले लग कर हम उस के ख़ूब रोए
ख़ुशी इक दिन मिली थी राह चलते
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दुख से दो-चार साल छोटा हूँ
हिज्र से एक दिन बड़ा हूँ मैं
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क़ीमत मिरे सोने की वहाँ ख़ाक लगेगी
हो ख़ाक की क़ीमत जहाँ सोने के बराबर
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मोहब्बत आम सा इक वाक़िआ' था
हमारे साथ पेश आने से पहले
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रौशनी उन दिनों की बात है जब
दे रहा था कोई दिखाई हमें
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नमी जगह बना रही है आँख में
ये तीर अब कमान से निकालिए
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टैग : तीर
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इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना
कौन कहता है मोहब्बत नहीं कर सकते हम
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एक रिम-झिम सी कैफ़ियत के बाद
मूसला-धार हो रहा हूँ मैं
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कुएँ की सम्त बुला ले न कोई ख़्वाब मुझे
मैं अपने बाप का सब से हसीन बेटा हूँ
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हम को मिसरा के तंग सीने में
आह भरने का तज्रबा है मियाँ
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ये जो तालाब है दरिया था कभी
मैं यहाँ बैठ के रोता था कभी
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ख़रीदारों में भगदड़ मच गई है
हम अपने दाम बतलाने लगे हैं
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दुख से दो चार साल छोटा हूँ
हिज्र से एक दिन बड़ा हूँ
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सुना है कोई दीवाना यहाँ पर
रहा करता था वीराने से पहले
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मैं तिरे दाएँ बाएँ रहता हूँ
ऐ मिरे सामने की मजबूरी
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आप अगर समझा दें ख़ाल-ओ-ख़द मंज़र के
हम अपनी हैरत का नाम बता सकते हैं
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इक अदावत से फ़राग़त नहीं मिलती वर्ना
कौन कहता है मोहब्बत नहीं कर सकते हम
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ज़बाँ पे तौबा की ते किस तरफ़ से आ निकली
अभी गिलास में बाक़ी शराब की बे है
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