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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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सय्यद रियाज़ रहीम

1959 | मुंबई, भारत

सय्यद रियाज़ रहीम के शेर

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कितना दुश्वार लग रहा था सफ़र

देखो हम गए वहाँ से यहाँ

बहुत घाटे में है उर्दू ज़बाँ क्यों

मोहब्बत की ज़बाँ होते हुए भी

तेरे कहने से चुप नहीं हूँ मैं

जानता हूँ कि बोलना कब है

होंट अपने हैं दाँत भी अपने

क्या शिकायत करें किसी से हम

शोर में नफ़रत के मेरी बात ज़ाएअ' हो गई

मेरा कहना और था उन का समझना और था

नज़र रखते हैं उस की हर अदा पर

ब-ज़ाहिर बे-ख़बर होते हुए भी

एक तुम हो कि तुम्हें सोचना आता ही नहीं

एक हम हैं कि बहुत सोच के नुक़सान में हैं

अब तिरे शहर में रहना कोई आसान कहाँ

सब मुझे तेरे हवाले ही से पहचानते हैं

हादसे से हादसे तक ज़िंदगी का है सफ़र

बीच में ख़ुशियाँ हैं कुछ वो भी ग़मों के साथ हैं

आसमाँ कह रहा है अपनी बात

ज़मीं तेरा तजरबा क्या है

अजीब ख़ौफ़ का आलम है अपने चारों तरफ़

सफ़र में लगता है ये आख़िरी सफ़र तो नहीं

अब तो सन्नाटे भी अच्छे नहीं लगते हम को

शोर सुनते थे कभी शोर मचाते थे कभी

अब और क्या कहूँ मैं मोहब्बत के बाब में

मैं उन के साथ हूँ जो मोहब्बत के साथ हैं

कमी जो आने लगी है हमारी वहशत में

हमारे हाथ से सहरा निकल भी सकता है

मिरे ही घर में रहना चाहती है

मोहब्बत दर-ब-दर होते हुए भी

बहुत कुछ काम हम सब कर चुके हैं

दिलों में घर बनाना रह गया है

शायद जड़ों के ज़हर ने शाख़ों को छू लिया

उड़ता हुआ शजर से परिंदा दिखाई दे

हर सुब्ह निकलते हैं यही सोच के घर से

बिखरी हुई दुनिया को समेटेंगे किसी दिन

इधर से मैं भी जाना चाहता हूँ

उधर से भी इशारा हो गया है

हमारे 'अह्द में क्यों जहल का है रुत्बा बुलंद

शिकस्त खाई हुई आगही सवाल उठा

बहुत घाटे में है उर्दू ज़बाँ क्यों

मोहब्बत की ज़बाँ होते हुए भी

मस्जिद मंदिर के झगड़े तो होते मिटते रहते हैं

दफ़्न हैं जिस में दिल के रिश्ते उस मलबे की बात करें

भँवर की सम्त बढ़ती जा रही है

ये कश्ती बादबाँ होते हुए भी

जो मिरे दोस्त हैं दुश्मन भी वही हैं मेरे

किस सलीक़े से निभाते हैं वो दोनों रिश्ते

'इश्क़ में कामयाब होना भी

इक हुनर है कोई मज़ाक़ नहीं

सच की राह पे चलते चलते हार गए हर बाज़ी हम

जिन लोगों ने दुनिया जीती वो कब अपने जैसे थे

वक़्त कैसा ये गया है अब

वो भी मश्कूक हैं जो अच्छे हैं

सब दोस्तों से मुझ को ज़ियादा 'अज़ीज़ है

ऐसा भी एक शख़्स मिरे दुश्मनों में है

सुना तो ये है कि ऐसा कभी नहीं होता

हुआ तो ये है कि ये बार बार होता है

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