शाहीन अब्बास के शेर
उस के बा'द अगली क़यामत क्या है किस को होश है
ज़ख़्म सहलाता था और अब दाग़ दिखलाता हूँ मैं
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टैग : दाग़
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ये दिन और रात किस जानिब उड़े जाते हैं सदियों से
कहीं रुकते तो मैं भी शामिल-ए-पर्वाज़ हो सकता
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टैग : ज़िंदगी
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अपनी सी ख़ाक उड़ा के बैठ रहे
अपना सा क़ाफ़िला बनाते हुए
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टैग : सफ़र
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हर्फ़ के आवाज़ा-ए-आख़िर को कर देता हूँ नज़्म
शे'र क्या कहता हूँ ख़ामोशी को फैलता हूँ मैं
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इक ज़माने तक बदन बे-ख़्वाब बे-आदाब थे
फिर अचानक अपनी उर्यानी का अंदाज़ा हुआ
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टैग : आगही
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अब खुला ख़्वाब में कुछ ख़्वाब मिलाता था मैं
ख़ाक उड़ाता था मैं सय्यारों की सय्यारों पर
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लहू के किनारे भी ज़द पर हैं दोनों
ये क्या ज़ख़्म है मुंदमिल होने वाला
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