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Shaukat Fahmi's Photo'

शौकत फ़हमी

1965 | पाकिस्तान

मशहूर पाकिस्तानी शाइरों में शामिल, मुशाइरों में भी मक़बूल

मशहूर पाकिस्तानी शाइरों में शामिल, मुशाइरों में भी मक़बूल

शौकत फ़हमी के शेर

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इक उम्र तक मैं उस की ज़रूरत बना रहा

फिर यूँ हुआ कि उस की ज़रूरत बदल गई

बदला जो वक़्त गहरी रिफ़ाक़त बदल गई

सूरज ढला तो साए की सूरत बदल गई

हमारे पास सुनाने को कुछ नहीं 'फ़हमी'

हमें तो ख़्वाब भी देखे हुए ज़माना हुआ

ज़रा शादाब होना चाहते हैं

हमें रोने दो रोना चाहते हैं

कहानी को समेटो जल्द 'फ़हमी'

थके हैं लोग सोना चाहते हैं

आख़री बस है और निकलने वाली है

जाओ इक सीट बराबर ख़ाली है

वो एक शख़्स किसी तौर जो मिरा हुआ

मिरी बला से किसी का हुआ हुआ हुआ

इसी लिए मुझे रस्ते में शाम आई है

मैं अपनी सम्त बड़ी देर से रवाना हुआ

लोग अब इस तरह डरे हुए हैं

आँख ख़ाली है दिल भरे हुए हैं

ध्यान में कोई चेहरा ला कर मर्ज़ी का

आँखें बुन लेती हैं मंज़र मर्ज़ी का

शहर की हालत इतनी भी मख़दूश नहीं

देखो मैं ने आज भी जान बचा ली है

धूप घड़े से ले गई सारे पानी को

कव्वा ढूँढता रह गया कंकर मर्ज़ी का

हम दिए हैं हवा के रस्ते में

और तरतीब से धरे हुए हैं

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