शैख़ अली बख़्श बीमार के शेर
दम न निकला यार की ना-मेहरबानी देख कर
सख़्त हैराँ हूँ मैं अपनी सख़्त-जानी देख कर
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कौन पुरसाँ है हाल-ए-बिस्मिल का
ख़ल्क़ मुँह देखती है क़ातिल का
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चशम-दिलबर ने दिल-ए-ज़ार की दिलदारी की
आह बीमार ने बीमार की ग़म-ख़्वारी की
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