शिबली नोमानी के शेर
आप जाते तो हैं उस बज़्म में 'शिबली' लेकिन
हाल-ए-दिल देखिए इज़हार न होने पाए
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मैं रूह-ए-आलम-ए-इम्काँ में शरह-ए-अज़्मत-ए-यज़्दाँ
अज़ल है मेरी बेदारी अबद ख़्वाब-ए-गिराँ मेरा
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अजब क्या है जो नौ-ख़ेज़ों ने सब से पहले जानें दीं
कि ये बच्चे हैं इन को जल्द सो जाने की आदत है
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जम्अ कर लीजिए ग़ैरों को मगर ख़ूबी-ए-बज़्म
बस वहीं तक है कि बाज़ार न होने पाए
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फ़राज़-ए-दार पे भी मैं ने तेरे गीत गाए हैं
बता ऐ ज़िंदगी तू लेगी कब तक इम्तिहाँ मेरा
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तस्ख़ीर-ए-चमन पर नाज़ाँ हैं तज़ईन-ए-चमन तो कर न सके
तसनीफ़ फ़साना करते हैं क्यूँ आप मुझे बहलाने को
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ये नज़्म-ए-आईं ये तर्ज़-ए-बंदिश सुख़नवरी है फ़ुसूँ-गरी है
कि रेख़्ता में भी तेरे 'शिबली' मज़ा है तर्ज़-ए-'अली-हज़ीं' का
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टैग : रेख़्ता
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