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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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शोहरत बुख़ारी

1925 - 2001 | लंदन, यूनाइटेड किंगडम

जदीद ग़ज़ल को नया तर्ज़-ए-एहसास और कल्पना-शक्ति प्रदान करने वालों में शामिल

जदीद ग़ज़ल को नया तर्ज़-ए-एहसास और कल्पना-शक्ति प्रदान करने वालों में शामिल

शोहरत बुख़ारी के शेर

हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा

चाँद के साथ चलोगे कब तक

ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को

सुकून याद में तेरी भूलने में क़रार

हाँ ग़म-ए-इश्क़ मुझ को पहचान

दिल बन के धड़क रहा हूँ कब से

हर सम्त फ़लक-बोस पहाड़ों की क़तारें

'ख़ुसरव' है 'शीरीं' है तेशा है फ़रहाद

कुछ ऐसा धुआँ है कि घुट्टी जाती हैं साँसें

इस रात के ब'अद आओगे शायद कभी याद

पर्दे में ख़मोशी के बुर्के में उदासी के

शायद कोई जाए दरवाज़ा खुला रखना

जब तुझे भूलना चाहा दिल ने

इक नए ग़म की सज़ा दी हम ने

कोठे उजाड़ खिड़कियाँ चुप रास्ते उदास

जाते ही उन के कुछ रहा ज़िंदगी के पास

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