सिराज फ़ैसल ख़ान के शेर
किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं
टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है
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हमें रंजिश नहीं दरिया से कोई
सलामत गर रहे सहरा हमारा
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तिरे एहसास में डूबा हुआ मैं
कभी सहरा कभी दरिया हुआ मैं
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दश्त जैसी उजाड़ हैं आँखें
इन दरीचों से ख़्वाब क्या झांकें
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शायद अगली इक कोशिश तक़दीर बदल दे
ज़हर तो जब जी चाहे खाया जा सकता है
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कई दिन बा'द उस ने गुफ़्तुगू की
कई दिन बा'द फिर अच्छा हुआ मैं
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वो एक शख़्स जो दिखने में ठीक-ठाक सा था
बिछड़ रहा था तो लगने लगा हसीन बहुत
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आज मेरी इक ग़ज़ल ने उस के होंटों को छुआ
आज पहली बार अपनी शाइ'री अच्छी लगी
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मैं मुंतज़िर हूँ किसी ऐसे वस्ल का जिस में
मिरे बदन पे तिरे जिस्म का लिबास रहे
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चाँद बैठा हुआ है पहलू में
क़तरा क़तरा पिघल रहा हूँ मैं
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वो कभी आग़ाज़ कर सकते नहीं
ख़ौफ़ लगता है जिन्हें अंजाम से
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जैसे देखा हो आख़िरी सपना
रात इतनी उदास थीं आँखें
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मैं अच्छा हूँ तभी अपना रही हो
कोई मुझ से भी अच्छा मिल गया तो
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तुम उस को बुलंदी से गिराने में लगे हो
तुम उस को निगाहों से गिरा क्यूँ नहीं देते
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जब से हासिल हुआ है वो मुझ को
ख़्वाब आने लगे बिछड़ने के
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बिछड़ जाएँगे हम दोनों ज़मीं पर
ये उस ने आसमाँ पर लिख दिया है
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मैं तेरे ज़िक्र की वादी में सैर करता रहूँ
हमेशा लब पे तिरे नाम की मिठास रहे
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खुली आँखों से भी सोया हूँ अक्सर
तुम्हारा रास्ता तकता हुआ मैं
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तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तिरे
फिसल रही थी मिरे पाँव से ज़मीन बहुत
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तअ'ल्लुक़ तोड़ कर उस की गली से
कभी मैं जुड़ न पाया ज़िंदगी से
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दिल की दीवार पर सिवा उस के
रंग दूजा कोई चढ़ा ही नहीं
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मैं कहकशाओं में ख़ुशियाँ तलाशने निकला
मिरे सितारे मेरा चाँद सब उदास रहे
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खुली जो आँख तो महशर का शोर बरपा था
मैं ख़ुश हुआ कि चलो आज मर गई दुनिया
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उस के दिल की आग ठंडी पड़ गई
मुझ को शोहरत मिल गई इल्ज़ाम से
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ख़ौफ़ आता है अपने साए से
हिज्र के किस मक़ाम पर हूँ मैं
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उस की यादों की काई पर अब तो
ज़िंदगी-भर मुझे फिसलना है
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लिक्खा है तारीख़ के सफ़हे सफ़हे पर ये
शाहों को भी दास बनाया जा सकता है
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मैं संग-ए-मील था तो ये करना पड़ा मुझे
ता-उम्र रास्ते में ठहरना पड़ा मुझे
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ज़मीं मेरे सज्दे से थर्रा गई
मुझे आसमाँ से पुकारा गया
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ख़याल कब से छुपा के ये मन में रक्खा है
मिरा क़रार तुम्हारे बदन में रक्खा है
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तिरी हयात से जुड़ जाऊँ वाक़िआ' बन कर
तिरी किताब में मेरा भी इक़्तिबास रहे
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वस्ल में सूख गई है मिरी सोचों की ज़मीं
हिज्र आए तो मिरी सोच को शादाब करे
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मालिक मुझे जहाँ में उतारा है किस लिए
आदम की भूल मेरा ख़सारा है किस लिए
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हाथ छूटा तो तीरगी में था
साथ छूटा तो बुझ गईं आँखें
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