सुबहान असद के शेर
मैं जानता हूँ तिरी रूह की तलब जानाँ
तुझे बदन की तरफ़ से नहीं छुऊँगा मैं
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हमारी मिट्टी से क्या बनेगा
बहुत बना तो ख़ुदा बनेगा
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मैं एक ठहरा हुआ पल तू बहता दरिया है
तुझे मिलूँगा तो फिर टूट कर मिलूँगा मैं
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ये हम जो बुत हो के देखते हैं
यही तुम्हारी अदा बनेगा
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