स्वप्निल तिवारी के शेर
ये ज़िंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है
कहीं अभी तो मुझे ख़ुद-कुशी नहीं करनी
सारा ग़ुस्सा अब बस इस काम आता है
हम इस से सिगरेट सुलगाया करते हैं
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बड़े ही ग़ुस्से में ये कह के उस ने वस्ल किया
मुझे तो तुम से कोई बात ही नहीं करनी
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टैग : यौन इच्छा
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और कम याद आओगी अगले बरस तुम
अब के कम याद आई हो पिछले बरस से
मेरे ता'वीज़ में जो काग़ज़ है
उस पे लिक्खा है मोहब्बत करना
उजालों में छुपी थी एक लड़की
फ़लक का रंग-रोग़न कर गई है
अगर दोबारा बनी ये दुनिया
तो पहले तेरी गली बनेगी
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कब तक चुनरी पर ही ज़ुल्म हों रंगों के
रंगरेज़ा तेरी भी क़बा पर बरसे रंग
नींद का रस्ता छोटा है
जिस में ख़्वाब की ठोकर है
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टैग : ख़्वाब
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शाख़ पर शब की लगे इस चाँद में है धूप जो
वो मिरी आँखों की है सो वो समर मेरा भी है
खुले मिलते हैं मुझ को दर हमेशा
मिरे हाथों में दस्तक भर गई है
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टैग : प्रेरणादायक
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किस ने रस्ते में चाँद रक्खा है
उस से टकरा के गिर पड़ेंगे हम
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मेरे 'अनासिर ख़ाक न हों बस रंग बनें
और जंगल सहरा दरिया पर बरसे रंग