रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया
ये ज़िंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है
कहीं अभी तो मुझे ख़ुद-कुशी नहीं करनी
किसी ने फिर से लगाई सदा उदासी की
पलट के आने लगी है फ़ज़ा उदासी की
मैं मरीज़ हूँ तिरे हिज्र का ज़रा हाथ में मिरा हाथ ले
तू ग़मों का मेरे इलाज कर मिरी बात सुन तू अभी न जा
तूफ़ाँ के बा'द मैं भी बहुत टूट सा गया
दरिया फिर अपने रुख़ पे बहा ले गया मुझे
बड़ी मुश्किल से आ के बैठा हूँ
दर्द उठते हैं मत उठाएँ मुझे
ग़म का साथी कौन है ये सोच कर तन्हा था मैं
साथ लेकिन मेरे 'नश्तर' रो रही थी चाँदनी
जादा-ए-ग़म में आरज़ू के सिवा
हम-सफ़र दूसरा नहीं होता
आफ़त-ओ-क़हर फ़ित्ने मुसीबत अलम दर्द तकलीफ़ कर्ब-ओ-बला रंज-ओ-ग़म
इक तवज्जोह हटाई जो उस ने ज़रा देख लो ख़ुद पे कैसी घड़ी आ गई
वो कहते हैं वल्लह ये क्या हो गया है
ज़रा भी जो आँखों को नम देखते हैं
छपी थी जिस की ग़ज़ल में ज़माने भर की ख़ुशी
ख़ुद उस की ज़ीस्त का नग़्मा अज़ाब सा उभरा
कोई अपने ही ग़म से ख़ाली कहाँ है
जहाँ में कोई मेरा ग़म-ख़्वार क्यूँ हो