तरकश प्रदीप के शेर
हम तो कहते हैं मोहब्बत में मज़ा है ही नहीं
आप कहते हैं तो फिर मान लिया जाता है
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और भटकेंगे तो कुछ और नया देखेंगे
हम तो आवारा परिंदे हैं हमारा क्या है
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पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ
कितने आईने बदले हैं मैं वैसे का वैसा हूँ
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बनाता हूँ मैं तसव्वुर में उस का चेहरा मगर
हर एक बार नई काएनात बनती है
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आज फिर ख़ुद से ख़फ़ा हूँ तो यही करता हूँ
आज फिर ख़ुद से कोई बात नहीं करता मैं
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टैग : ख़फ़ा
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मेरा पिंजरा खोल दिया है तुम भी अजीब शिकारी हो
अपने ही पर काट लिए हैं मैं भी अजीब परिंदा हूँ
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अब तो मैं और भी बुरा हूँ कि
अब ज़ियादा सुधर गया हूँ मैं
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तुझे गले से लगा के भी देखा जाएगा
अभी तो मुझ को तिरा इंतिज़ार करना है
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टैग : इंतिज़ार
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यूँ अपने आप को बर्बाद करता है कोई
ऐ मेरे दिल तू समझदार है नहीं है क्या
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तुम ने तो आप ही पिंजरे को खुला छोड़ दिया
कोई ऐसे भी परिंदों को रिहा करता है
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हुस्न होता है किसी शय का कोई अपना ही
और फिर देखने वाले की नज़र होती है
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टैग : हुस्न
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ख़ूब मुश्किल है पर आसान लिया जाता है
कितना हल्के में ये इंसान लिया जाता है
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आप ने इस के फ़साने ही सुने होते हैं
और अचानक ये बला आप के सर होती है
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टैग : ज़िंदगी
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मुझ से कहते नहीं बनता कि सितम कम कीजे
फिर न ऐसा हो किसी रोज़ मिरा ग़म कीजे
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