तुफ़ैल बिस्मिल के शेर
वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो
वक़्त इक दिन हम को भी खा जाएगा
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फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर
वक़्त आया है गए वक़्त को लौटाने का
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आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ
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इक बहाना है तुझे याद किए जाने का
कब सलीक़ा है मुझे वर्ना ग़ज़ल गाने का
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