उम्मतुर्रऊफ़ नसरीन के शेर
देखिए अब न याद आइए आप
आज कल आप से ख़फ़ा हूँ मैं
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क्या तुम्हें अहद-ए-मोहब्बत के वो लम्हे याद हैं
जब निगाहें बोलती थीं और हम ख़ामोश थे
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मैं ने बेताब हो के हाथ बढ़ाए
उस ने बेताब हो के चूम लिए
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मुरव्वत में होने लगा है इज़ाफ़ा
मोहब्बत में आने लगी है कमी
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तुम्हारी याद बड़ी ख़ुश-गवार थी लेकिन
दिल-ए-हज़ीं के लिए तल्ख़ियाँ बढ़ा भी गई
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वो मुल्तफ़ित थे हम ही बयाँ कर सके न हाल
मंज़िल के पास आ के क़दम डगमगा गए
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