यासिर ख़ान इनाम के शेर
तुम उस के पास हो जिस को तुम्हारी चाह न थी
कहाँ पे प्यास थी दरिया कहाँ बनाया गया
तुम्हारे ख़त में नज़र आई इतनी ख़ामोशी
कि मुझ को रखने पड़े अपने कान काग़ज़ पर
मैं तिरे हुस्न का शैदाई नहीं हो सकता
रोज़ बटती हुई ख़ैरात से डर लगता है
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