यासिर तहसीन के शेर
आ ही जाता था ख़याल-ए-ग़ैर मेरे ज़ेहन में
'ऐन मौक़ा' पर तुम्हारी याद ने खटका किया
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दग़ा से बाज़ आओ मीर 'जा'फ़र'
हमारे लोग मारे जा रहे हैं
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उस ने दिन जल्दी ढलने की ख़्वाहिश की
धरती ने रफ़्तार बढ़ा दी गर्दिश की
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जो तुम न होगी तो दिल हवेली सराए होगी
सराए जिस में हसीन चेहरे रुका करेंगे
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पहले तू इक झूटे ग़म में मिट जाने का नाटक रच
फिर दुनिया को जा जा कर बतला तू कितने दुख में है
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सितम ये है तिरी आँखों का पानी
मिरे सीने की मिट्टी काटता है
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हम दोनों का 'इश्क़ मुकम्मल होना मुश्किल लगता है
तू जिंस-ए-जिन्नात की पैदा और मैं बेटा आदम का
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इक दिन हर मंज़र काला हो जाएगा
सूरज उस की ज़ुल्फ़ों में खो जाएगा
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चल दिए हैं बोल कर वापस न लौटेंगे कभी
चल दिए हैं इक दफ़'अ फिर लौट आने के लिए
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ख़ुदा की आँख हैं आँखें हमारी
ख़ुदा इन से ही दुनिया देखता है
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रात हुई तो सब देवों ने मंदिर में
उस जोगन को शीश नवाए रक़्स किया
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तुम जो कहते हो चूम लोगे हमें
करने वाले कहा नहीं करते
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हाए वो शोख़ संदली क़ामत
जिस ने मुझ बे-नियाज़ को मारा
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ये अब्र-ए-नौ हमारे किसी काम का नहीं
उन को पसंद ही नहीं बारिश में भीगना
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दर्द-ए-दिल ज़िंदगी की ख़ुशी पी गया
इक समुंदर हमारी नदी पी गया
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तिरी याद सीने से रुख़्सत हुई
ये बुढ़िया बड़े दिन से बीमार थी
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तसव्वुर करो वो तुम्हें चाहते हैं
तसव्वुर करो ये तसव्वुर नहीं है
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क्यों दे रहे हो दस्तकें चौखट पे बारहा
कितनी दफ़'अ बताऊँ कि घर पर नहीं हूँ मैं
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आमद हुई थी मैं ने ही धुत्कार दी ग़ज़ल
ये कह के दूसरा कोई शा'इर तलाश कर
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आँसू करेंगे एक भी ज़ाए' न आँख से
दरिया को पाट कर यहाँ सहरा बनाएँगे
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जब किसी सूरत नहीं है मुझ को एहसास-ए-वजूद
फिर मिरे किस काम का है ये जहान-ए-हस्त-ओ-बूद
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ऐसी तन्हा रातों में ही आती है
एक ग़ज़ल जो शा'इर को खा जाती है
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