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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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यासमीन हबीब के शेर

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हमें भी तजरबा है बे-घरी का छत होने का

दरिंदे, बिजलियाँ, काली घटाएँ शोर करती हैं

जो चला गया सो चला गया जो है पास उस का ख़याल रख

जो लुटा दिया उसे भूल जा जो बचा है उस को सँभाल रख

आते रहते हैं फ़लक से भी इशारे कुछ कुछ

बात कर लेते हैं हम से चाँद तारे कुछ कुछ

ख़ुद अपना साथ भी चुभने लगा था

अजब तन्हाई की आदत हुई थी

ये कमरा और ये गर्द-ओ-ग़ुबार उस का है

वो जिस ने आना नहीं इंतिज़ार उस का है

किस की आँखों को नींद चुभती है

कौन जागा रहा है उम्र के साथ

मुझ को उतार हर्फ़ में जान-ए-ग़ज़ल बना मुझे

मेरी ही बात मुझ से कर मेरा कहा सुना मुझे

कैसा चेहरा है रात की तफ़्सील

कौन जल कर बुझा है उम्र के साथ

हमें सैराब रक्खा है ख़ुदा का शुक्र है उस ने

जहाँ बंजर ज़मीनें हों अनाएँ शोर करती हैं

जाती थी कोई राह अकेली किसी जानिब

तन्हा था सफ़र में कोई साया उसे कहना

किसी ख़सारे के सौदे में हाथ आया था

सो एक क़ीमती शय में शुमार उस का है

अभी से अच्छा हुआ रात सो गई वर्ना

कभी तो ख़त्म-ए-सफ़र रतजगे का होना था

कैसे हों ख़्वाब आँख में कैसा ख़याल दिल में हो

ख़ुद ही हर एक बात का करना था फ़ैसला मुझे

एक साया सा फ़ड़फ़ड़ाता है

कोई शय रौशनी से गुज़री है

मैं घर से जाऊँ तो ताला लगा के जाती हूँ

कुछ उस की शोहरतें कुछ ए'तिबार उस का है

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