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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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यासमीन हमीद

1951 | पाकिस्तान

यासमीन हमीद

ग़ज़ल 28

नज़्म 6

अशआर 19

इतनी बे-रब्त कहानी नहीं अच्छी लगती

और वाज़ेह भी इशारे नहीं अच्छे लगते

क्यूँ ढूँडने निकले हैं नए ग़म का ख़ज़ीना

जब दिल भी वही दर्द की दौलत भी वही है

किसी के नर्म लहजे का क़रीना

मिरी आवाज़ में शामिल रहा है

रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक

और पाँव तले ज़ख़्म की वहशत भी वही है

समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है

मगर दरियाओं को तो पार करना चाहिए था

पुस्तकें 5

 

ऑडियो 5

इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते

उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है

पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी

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