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यासमीन हमीद

1951 | पाकिस्तान

यासमीन हमीद

ग़ज़ल 28

नज़्म 7

अशआर 19

एक दीवार उठाई थी बड़ी उजलत में

वही दीवार गिराने में बहुत देर लगी

जिस सम्त की हवा है उसी सम्त चल पड़ें

जब कुछ हो सका तो यही फ़ैसला किया

मुसलसल एक ही तस्वीर चश्म-ए-तर में रही

चराग़ बुझ भी गया रौशनी सफ़र में रही

पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी

हमें दुनिया नज़र आने में बहुत देर लगी

ख़ुशी के दौर तो मेहमाँ थे आते जाते रहे

उदासी थी कि हमेशा हमारे घर में रही

पुस्तकें 5

 

वीडियो 4

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
At a mushaira

यासमीन हमीद

Hum ye bhool jaate hain

यासमीन हमीद

Reciting own poetry

यासमीन हमीद

Reciting own poetry

यासमीन हमीद

ऑडियो 5

इतने आसूदा किनारे नहीं अच्छे लगते

उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है

पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी

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