Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Zahoor Chohan's Photo'

प्रसिद्ध उर्दू कवि और शिक्षक

प्रसिद्ध उर्दू कवि और शिक्षक

ज़हूर चौहान के शेर

119
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

पूरी हो जाती अगर कोई कहानी होती

ये मोहब्बत है मियाँ इस में कसक रहती है

आख़िरी बार मुलाक़ात तो कर ली है मगर

सिलसिला अपनी मोहब्बत का कहाँ आख़िरी है

मैं अपने आप में तक़्सीम होने लगता हूँ

उसे कहो कि मिरे सामने आया करे

रहता हूँ मैं जितना साथ सब के

लगता है अकेला हो गया हूँ

इन्ही झुके हुए पेड़ों से गुफ़्तुगू है मिरी

जनाब मेरे बुज़ुर्गों से गुफ़्तुगू है मिरी

ज़िंदगी कितने सलीक़े से गुज़ारा है तुझे

मुस्कुराते भी रहे ज़ख़्म भी खाते रहे हम

हमें दफ़्न करो कच्ची-पक्की क़ब्रों में

हम अहल-ए-'इल्म हैं मर कर भी जो नहीं मरते

कभी कभी तो मिरा घर भी मुझ से पूछता है

कि इस जहाँ में कोई तेरा घर भी है कि नहीं

किसी के साथ मिला हूँ बड़ी मोहब्बत से

कभी कभार जो मिलते हैं अच्छे रहते हैं

मैं रोज़ दाना नहीं डालता परिंदों को

कि भूल जाऊँ तो वो छत पे बैठे रहते हैं

शहर के चौराहे में आँखें रख दी हैं

बच कर वो इस बार किधर से निकलेगा

शे'र कह कर कभी देखो तो खुलेगा तुम पर

इतना आसाँ नहीं जितना ये हुनर लगता है

छाओं देता धूप उठाता रस्ते में

मैं ने देखा एक शजर दरवेशी में

शा'इरी अपना लहू इस लिए देता हूँ तुझे

जानता हूँ कि तू ज़िंदा मुझे कर सकती है

उस की पलकों पे जो चमके थे 'ज़हूर'

मेरे हाथों में वो तारे टूटे

हिज्र से वस्ल की इतनी थी मसाफ़त यारो

रंग तब्दील हुआ बहते हुए पानी का

सुख़न के आख़िरी दर पर सदा लगाता हूँ

'ज़हूर' अगले ज़मानों से गुफ़्तुगू है मिरी

नए घर में हर इक शय भी नई है

मगर ख़ुशबू उसी की रही है

Recitation

Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here

बोलिए