ज़किया ग़ज़ल के दोहे
कब तक जान बचाए फूल पे ओस का नन्हा क़तरा
पत्तों की भी ओट में हो तो सूरज पल पल ख़तरा
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पहले पहले प्यार की साजन पहली है बरसात
ओढ़ के लेटी याद तिरी और जाग के काटी रात
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तुम तो शान से निकले थे ले हाथ में मेरा हाथ
डर कर दुनिया वालों से क्यूँ छोड़ दिया है साथ
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जाने कितने मौसम बीते तुम न लौट के आए
मन दुखियारा बिरह का मारा कब तक आस लगाए
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दम भर में हुए सूखे पत्ते काँटे और बबूल
साजन जब तक आप यहाँ थे खिले रहे सब फूल
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नैन झरोके जुगनू मेरे तारे पड़ गए माँद
जब साजन मुख देखे मेरा बोले पूरा चाँद
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