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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Zameer Atraulvi's Photo'

ज़मीर अतरौलवी

1959 | अलीगढ़, भारत

ज़मीर अतरौलवी के शेर

ख़ून के जो रिश्ते थे बन गए अज़ाब-ए-जाँ

हम को दल के रिश्तों से इस्तिफ़ादा पहुँचा है

इज़्न सूरज की किरन को नहीं जाने का जहाँ

मेरी तख़्ईल का शाहीन वहाँ भी पहुँचा

ग़रीबी नाम है जिस का अज़ाब-ए-जान होती है

मगर दौलत की कसरत मोहलिक-ए-ईमान होती है

कोई भूका जो फ़र्त-ए-ज़ोफ़ से कुछ लड़खड़ा जाए

तो दुनिया तंज़ कसती है उसे मद-मस्त कहती है

हज़ारों ज़ुल्म हों मज़लूम पर तो चुप रहे दुनिया

अगर मज़लूम कुछ बोले तो दहशत-गर्द कहती है

उम्र भर जिस ने किसी का हुक्म माना ही नहीं

नफ़्स का अपने मगर वो शख़्स कारिंदा रहा

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