ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी के शेर
बेश-तर ख़ुदा पाया और बरमला पाया
हम ने तेरे बंदों को तुझ से भी सिवा पाया
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मेरे ग़म की तल्ख़ियों का इस से कुछ अंदाज़ा कर
मुझ को मय-नोशी से भी इंकार है तेरे बग़ैर
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जिस राह से उठा हूँ वहीं बैठ जाऊँगा
मैं कारवाँ की गर्द-ए-सफ़र हूँ ज़रा ठहर
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