जुरअत क़लंदर बख़्श के शेर
इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई
मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं
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मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
'उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया
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कैफ़ियत महफ़िल-ए-ख़ूबाँ की न उस बिन पूछो
उस को देखूँ न तो फिर दे मुझे दिखलाई क्या
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अहवाल क्या बयाँ मैं करूँ हाए ऐ तबीब
है दर्द उस जगह कि जहाँ का नहीं इलाज
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टैग : अहवाल
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भरी जो हसरत-ओ-यास अपनी गुफ़्तुगू में है
ख़ुदा ही जाने कि बंदा किस आरज़ू में है
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लब-ए-ख़याल से उस लब का जो लिया बोसा
तो मुँह ही मुँह में अजब तरह का मज़ा आया
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सभी इनआम नित पाते हैं ऐ शीरीं-दहन तुझ से
कभू तू एक बोसे से हमारा मुँह भी मीठा कर
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टैग : किस
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उस ज़ुल्फ़ पे फबती शब-ए-दीजूर की सूझी
अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी
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टैग : ज़ुल्फ़
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हैं लाज़िम-ओ-मलज़ूम बहम हुस्न ओ मोहब्बत
हम होते न तालिब जो वो मतलूब न होता
आँख उठा कर उसे देखूँ हूँ तो नज़रों में मुझे
यूँ जताता है कि क्या तुझ को नहीं डर मेरा
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टैग : दीदार
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दिल-ए-वहशी को ख़्वाहिश है तुम्हारे दर पे आने की
दिवाना है व-लेकिन बात करता है ठिकाने की
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टैग : दिल
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लगते ही हाथ के जो खींचे है रूह तन से
क्या जानें क्या वो शय है उस के बदन के अंदर
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टैग : बदन
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कल उस सनम के कूचे से निकला जो शैख़-ए-वक़्त
कहते थे सब इधर से अजब बरहमन गया
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अल्लाह-रे भुलापा मुँह धो के ख़ुद वो बोले
सूँघो तो हो गया ये पानी गुलाब क्यूँकर
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जब तलक हम न चाहते थे तुझे
तब तक ऐसा तिरा जमाल न था
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चाह की चितवन मेरी आँख उस की शरमाई हुई
ताड़ ली मज्लिस में सब ने सख़्त रुस्वाई हुई
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टैग : रुस्वाई
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पूछो न कुछ सबब मिरे हाल-ए-तबाह का
उल्फ़त का ये समर है नतीजा है चाह का
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इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की
दो माल की ज़कात कि दौलत ज़ियादा हो
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रंजिशें ऐसी हज़ार आपस में होती हैं दिला
वो अगर तुझ से ख़फ़ा है तू ही जा मिल क्या हुआ
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टैग : एकता
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जहाँ कुछ दर्द का मज़कूर होगा
हमारा शेर भी मशहूर होगा
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रखे है लज़्ज़त-ए-बोसा से मुझ को गर महरूम
तो अपने तू भी न होंटों तलक ज़बाँ पहुँचा
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टैग : किस
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ग़म मुझे ना-तवान रखता है
इश्क़ भी इक निशान रखता है
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चली जाती है तू ऐ उम्र-ए-रफ़्ता
ये हम को किस मुसीबत में फँसा कर
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बाल हैं बिखरे बैंड हैं टूटे कान में टेढ़ा बाला है
'जुरअत' हम पहचान गए हैं दाल में काला काला है
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पीछे पीछे मिरे चलने से रुको मत साहिब
कोई पूछेगा तो कहियो ये है नौकर मेरा
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उस शख़्स ने कल हातों ही हातों में फ़लक पर
सौ बार चढ़ाया मुझे सौ बार उतारा
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चुपके चुपके रोते हैं मुँह पर दुपट्टा तान कर
घर जो याद आया किसी का अपने घर में आन कर
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जल्दी तलब-ए-बोसा पे कीजे तो कहे वाह
ऐसा इसे क्या समझे हो तुम मुँह का निवाला
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टैग : किस
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हिज्र में मुज़्तरिब सा हो हो के
चार-सू देखता हूँ रो रो के
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टैग : हिज्र
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ता-फ़लक ले गई बेताबी-ए-दिल तब बोले
हज़रत-ए-इश्क़ कि पहला है ये ज़ीना अपना
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टैग : हज़ार दास्तान-ए-इश्क़
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पयाम अब वो नहीं भेजता ज़बानी भी
कि जिस की होंटों में लेते थे हम ज़बाँ हर रोज़
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मैं तो हैराँ हूँ मतब है कि दर-ए-यार है ये
याँ तो बीमार पे बीमार चले आते हैं
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आँख लगती नहीं 'जुरअत' मिरी अब सारी रात
आँख लगते ही ये कैसा मुझे आज़ार लगा
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क्या क्या किया है कूचा-ब-कूचा मुझे ख़राब
ख़ाना ख़राब हो दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का
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मिस्ल-ए-मजनूँ जो परेशाँ है बयाबान में आज
क्यूँ दिला कौन समाया है तिरे ध्यान में आज
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जो आज चढ़ाते हैं हमें अर्श-ए-बरीं पर
दो दिन को उतारेंगे वही लोग ज़मीं पर
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जल्द ख़ू अपनी बदल वर्ना कोई कर के तिलिस्म
आ के दिल अपना तिरे दिल से बदल जाऊँगा
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आज घेरा ही था उसे मैं ने
कर के इक़रार मुझ से छूट गया
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शब ख़्वाब में जो उस के दहन से दहन लगा
खुलते ही आँख काँपने सारा बदन लगा
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बोसे गर हम ने लिए हैं तो दिए भी तुम को
छुट गए आप के एहसाँ से बराबर हो कर
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लाश को मेरी छुपा कर इक कुएँ में डाल दो
यारो मैं कुश्ता हूँ इक पर्दा-नशीं की चाह का
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बिन देखे उस के जावे रंज ओ अज़ाब क्यूँ कर
वो ख़्वाब में तो आवे पर आवे ख़्वाब क्यूँ कर
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टैग : ख़्वाब
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तुझ सा जो कोई तुझ को मिल जाएगा तो बातें
मेरी तरह से तू भी चुपका सुना करेगा
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आया था शब को छुप के वो रश्क-ए-चमन सो आह
फैली ये घर में बू कि मोहल्ला महक गया
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वाँ से आया है जवाब-ए-ख़त कोई सुनियो तो ज़रा
मैं नहीं हूँ आप मैं मुझ से न समझा जाएगा
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शब-ए-हिज्र थी और मैं रो रहा था
कोई जागता था कोई सो रहा था
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टैग : हिज्र
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मुझ मस्त को क्यूँ भाए न वो साँवली सूरत
जी दौड़े है मय-कश का ग़िज़ा-ए-नमकीं पर
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है आशिक़ ओ माशूक़ में ये फ़र्क़ कि महबूब
तस्वीर-ए-तफ़र्रुज है वो पुतला है अलम का
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मेरे मरने की ख़बर सुन कर लगा कहने वो शोख़
दिल ही दिल में अपने कुछ कुछ सोच कर अच्छा हुआ
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ब'अद मुद्दत वो देख कर बोला
किस ने याँ ख़ाक का ये ढेर रखा
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